स्री - एक दिन था। (Poem for Woman )

" स्री " -  एक दिन था।


मेने जन्म लिया इस सृष्टि में और ख़ुशी बनी सबकी 
वो भी एक दिन था।

जब में माँ की कोख में थी और पिताकी गोद में थी 
वो भी एक दिन था।

चलता शिखाया उँगली पकड़के और कंधे पे बिठा के दिखाया जग 
वो भी एक दिन था।

खेले थे खेल बचपन के छुपा-छुपी और दोड़ा-दोड़ी सखियों के संग 
वो भी एक दिन था।

महाभारत और भूतो की कहानी सुनी थी दादा-दादी संग 
वो भी एक दिन था।

धीरे-धीरे हो गई जवा और स्कूल छोड़ कॉलेज जितनी हो गयी 
वो भी एक दिन था।

आ गया वो पल जब मेने बिदाय ली और गई ससुराल 
वो भी एक दिन था।

अपनाया दूसरा परिवार सब रिश्ते नातो से 
वो भी एक दिन था।

आयी वो ख़ुशी जब फिर से मेरा हुआ जन्म और बनी में माँ 
वो भी एक दिन था।

बीतते समय ने देरी ना की जब दिया मेने कन्या दान 
वो भी एक दिन था।

बुढ़ापा आया और आया स्वर्ग का बुलावा, छोड़ जाऊगी सब यहाँ 
वो भी एक दिन था।

में ज़िंदा रहूगी हर एक के दिलो में " स्री सम्मान बनकर "
वो भी एक दिन था।


 -Thankyou so much

3 टिप्‍पणियां:

Thankyou Dear.... For your best review and For giving your precious Time.

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